प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की बीजेपी सरकार ने तीन साल तीन साल पुरे कर लिए हैं। सरकार के अनुसार इन तीन सालों में सरकार ने उपलब्धियां हासिल की हैं। मीडिया ने भी सरकार के सुर में सुर मिलाते हुए सरकार के तीन साल के कार्यकाल का गुणगान किया है। एक संस्था द्वारा कराये गए सर्वे जिसमे लगभग 20,000 लोगों ने सरकार के कार्यकाल के बारे में अपने विचार व्यक्त किये। इस सर्वे में 17 प्रतिशत लोगों का मानना था की सरकार ने उम्मीद से अच्छा काम किया है, 44 प्रतिशत लोगों की राय में सरकार ने उम्मीद के मुताबिक काम किया है और 39 प्रतिशत लोगों ने माना की सरकार ने उम्मीद से काम काम किया है। नोटेबंदी (Demonetisation) के मुद्दे पर इस सर्वे में 51 प्रतिशत लोगों ने माना की इससे कालेधन पर लगाम लगाईं है, वहीँ 37 प्रतिशत मानते हैं की कालेधन पर इससे कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है। 47 प्रतिशत की राय में भ्रष्टार में कमी आई है। 63 प्रतिशत का मानना है की बेरोज़गारी कम हुई है। 60 प्रतिशत का मानना है महिलाओं के साथ होने वाल अपराधों में कमी आई है। जिस संस्था ने सर्वे कराया है उसके अनुसार इस सर्वे में लगभग 20,000 से अधिक लोगों ने विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय दी है। देश की आबादी लगभग सवा सौ करोड़ से अधिक है अब सवाल ये है की सवा सौ करोड़ से अधिक की आबादी वाले देश में सिर्फ 20,000 लोगों में किये गए सर्वे के आधार सरकार के तीन साल के कार्यकाल को कैसे सफल माना जा सकता है और उन 20,000 लोगों में से भी सिर्फ (17 + 44) 61 प्रतिशत लोगों की राय में सरकार ने अच्छा काम किया हैं। यानी 20,000 में से लगभग 12,200 लोगों ने सरकार को सफल माना है। सवा सौ करोड़ से अधिक आबादी में से सिर्फ 12,200 की राय के आधार पर सरकार के तीन साल के कार्यकाल को सफल कहना कहाँ तक सही है ?
वास्तिवकता में सरकार के तीन साल के कार्यकाल को देखा जाये तो देश आम जनता के लिए तीन साल बेहद मुश्किल भरे रहे हैं। पिछले तीन सालों में बढ़ती महंगाई से जनता परेशान है। महंगाई को मुद्दा बनाकर सत्ता हासिल करने वाली पार्टी वर्तमान में खुद महंगाई के मुद्दे पर पूरी तरह से नाकाम रही है। सरकार नोटबंदी (Demonetisation) को एक बड़ी उपलब्धि बता रही है जबकि हक़ीक़त में नोटबंदी (Demonetisation) से देश और जनता को कोई फायदा नहीं हासिल नहीं हुआ। न भ्रष्टाचार पर कोई लगाम लगी है। सरकार के अनुसार नोटबंदी (Demonetisation) से आतंकवाद और नक्सलवाद की फंडिंग ख़त्म हो जाएगी लेकिन नोटबंदी (Demonetisation) के बाद भी आतंकवादी और नक्सली घटनाओं पर रोक नहीं लग पाई है। नोटबंदी (Demonetisation) के बाद से देश में बेरोज़गारी बड़ी है। नोटबंदी का सीधा असर गरीब, किसान और मज़दूर वर्ग पर पड़ा। लगभग 2 महीने तक मज़दूरों के पास काम न के बराबर था। किसानो को फसल की सही समय पर बुआई नहीं कर पाए। स्टूडेंट को स्कूल / कॉलेज की फीस जमा करने में परेशानी हुई, नोटबंदी के समय जो शादियां थी उन्हें भी परेशानियां उठानी पड़ी। नोटबंदी (Demonetisation) के कारण देश में 100 से भी अधिक लोगों की मौत हुई। नोटबंदी से परेशांन हुए जनता के लिए बैंकों द्वारा लागू नए नियम भी मुश्किलें बढ़ाने वाले साबित हुए हैं, तीन बार से ज़्यादा नगद लेनदेन पर ट्रांसजेक्शन चार्ज वसूल करना, मेट्रो सिटी में बैंक खाते में न्यूनतम जमा राशि की सीम 5000, शहरी क्षेत्र में 3000, और ग्रामीण क्षेत्र में 1000 न होने पर जुर्माना का प्रावधान जैसे नियम जनता की परेशानी बढ़ाने वाले हैं। सरकार चाहती तो बैंकों के नियमो पर रोक लगाकर आम जनता को रहत दे सकती थी लेकिन सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया।
लगतार हमारे देश के सैनिक शहीद हो रहे हैं। पिछली सरकार के समय जब पकिस्तान द्वारा की गई की कायराना हरकत जिसमे देश के जवान को शहीद हुए थे शहीद जवान का सर काट दिया था उस समय बीजेपी ने सरकार की कड़ी आलोचना करके सरकार को कमज़ोर कहा था, एक सर के बदले 10 सर लाने की बात कही थी वही सरकार आज सैनिकों की शहादत पर सिर्फ निंदा करके अपनी ज़िम्मेदारी पूरी समझ लेती हैं। महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में कोई कमी नहीं आई है। आज देश में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। मासूम बच्ची से लेकर की बुज़ुर्ग महिला तक सुरक्षित नहीं है। देश में साम्प्रदायिकता बड़ी है। मुस्लिम और दलितों पर को निशाना बनाया जा रहा हैं। दादरी के अख़लाक़ से लेकर राजस्थान के पहलु खान की हत्या तक ऐसी घटनायें लगातार बड़ी हैं, सरकार इन घटनाओं को नियंत्रित नहीं कर पा रही है। क़र्ज़ के बोझ से दबे में किसान आत्महत्या कर रहे हैं, लगभग पिछले से 2 महीने से तमिलनाडु के किसान अपनी मांगो के लेकर दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे हैं, उनकी सहायता तो दूर की बात है सरकार का कोई प्रतिनिधि तक कोई आश्वासन देने भी नहीं पहुंचा।
अंतरष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि की बात करें तो संयुक्त राष्ट्र की 'द वर्ल्ड हैप्पीनैस रिपोर्ट 2016' के अनुसार भारत खुशहाल देशों की सूची में 122 पर पहुँच गया है। भारत इस सूची में पाकिस्तान और चीन से भी पीछे हो गया। सोमालिया और बांग्लादेश जैसे गरीब देश भी इस सूची में भारत से आगे हैं। वर्ष 2015 में जारी रिपोर्ट में भारत का स्थान 118 था जो 2016 में पिछड़कर 122 पर पहुँच गया है।
महंगाई, बेरोज़गारी, गरीबी, आतंकवाद, नक्सलवाद, नोटबंदी, सम्पदायिकता, महिला के साथ अपराध, किसान आत्महत्या कुल मिलकर इतनी सब समस्याओं के बाद भी अगर सवा सौ करोड़ की आबादी में से सिर्फ 12,200 लोगों की राय के आधार पर सरकार के तीन साल के कार्यकाल को उपलब्धियों से भरा हुआ कैसे माना जा सकता है।
No comments:
Post a Comment