पाकिस्तान जेल में क़ैद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव जिन्हे पाकिस्तानी अदालत ने जासूसी के आरोप में फांसी की सजा सुनाई है, भारत ने इस मामले में कुलभूषण जाधव को काउंसेलर एक्सेस न देना मानव अधिकार का उलंघन मानते हुए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) में अपील की और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने भारत की अपील के आधार पर कुलभूषण जाधव की फांसी पर अंतिम फैसला न होते तक रोक लगा दी है। इस मांमले में देश में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के बारे में काफी चर्चा हुई। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय क्या है ? यह कैसे काम करता है ? इसकी स्थापना कब हुई ? वह के न्यायधीश, कार्यप्रणाली आदि के बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते हैं। आइए जानते हैं अंतरराष्ट्रीय न्यायालय क्या है ? और यह कैसे काम करता है।
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) संयुक्त राष्ट्र का प्रधान न्यायिक अंग है और इस संघ के पांच मुख्य अंगों मे से एक है। इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषणा पत्र के अंतर्गत हुई है। इसका उद्घाटन अधिवेशन 18 अप्रैल 1946 ई. को हुआ था। इस न्यायालय ने अंतर्राष्ट्रीय न्याय के स्थाई न्यायालय की जगह ले ली थी। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) के प्रशासन व्यय का भार संयुक्त राष्ट्रसंघ पर है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) मुख्यालय हेग नीदरलैंड स्थित''पीस पैलेस'' में है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) कुल 15 स्थति न्यायाधीश होते हैं, प्रत्येक न्यायाधीश का कार्यकाल 9 वर्ष का होता है, आवश्यकता पड़ने पर कार्यकाल बढ़ाया भी जा सकता है। किसी न्यायाधीश के पद रहते हुए मृत्यु होने की दशा में उसी देश से न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है। हर तीसरे साल इन 15 न्यायाधीशों में से पांच चुने जा सकते है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के पांचों स्थाई सदस्य देशों अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम में से सदैव एक न्यायाधीश पैनल में शामिल होता ही है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में एक ही देश के 2 न्यायाधीशों को नियुक्त नहीं किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में पदस्थ इन न्यायाधीशों को किसी भी प्रकार का कोई अन्य पद नियुक्त होने की अनुमति नहीं होती है। किसी एक न्यायाधीश को हटाने के लिए बाकी के न्यायाधीशों का सर्वसम्मत निर्णय जरूरी है। न्यायालय द्वारा सभापति तथा उपसभापति का निर्वाचन और रजिस्ट्रार की नियुक्ति होती है।
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के संविधान में कुल 5 अध्याय व 79 अनुच्छेद हैं। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में फ्रेंच तथा अंग्रेजी भाषा में कराया किया जाता है। विभिन्न पक्षों का प्रतिनिधित्व अभिकर्ता द्वारा होता है। वकीलों की भी सहायता ली जा सकती है। न्यायालय में मामलों की सुनवाई सार्वजनिक रूप से तब तक होती है जब तक न्यायालय का आदेश अन्यथा न हो। सभी प्रश्नों का निर्णय न्यायाधीशों के बहुमत से होता है। सभापति को निर्णायक मत देने का अधिकार है। न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है, उसकी अपील नहीं हो सकती किंतु कुछ मामलों में पुनर्विचार हो सकता है। निर्णय बहुमत निर्णय के अनुसार लिए जाते है। बहुमत से सहमती न्यायाधीश मिलकर एक विचार लिख सकते है, या अपने विचार अलग से लिख सकते है। बहुमत से विरुद्ध न्यायाधीश भी अपने खुद के विचार लिख सकते है।
जब किसी दो राष्ट्रों के बीच का संघर्ष अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के सामने आता है, वे राष्ट्र चाहे तो किसी समदेशी तदर्थ न्यायाधीश को नामजद कर सकती हैं। इस प्रक्रिया का कारण था कि वह देश जो न्यायालय में प्रतिनिधित्व नहीं है भी अपने संधर्षों के निर्णय अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को लेने दे। अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय संविधि में सम्मिलित समस्त राष्ट्र अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर सकते हैं। इसका क्षेत्राधिकार संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र अथवा विभिन्न; संधियों तथा अभिसमयों में परिगणित समस्त मामलों पर है। अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय संविधि में सम्मिलत कोई राष्ट्र किसी भी समय बिना किसी विशेष प्रसंविदा के किसी ऐसे अन्य राष्ट्र के संबंध में, जो इसके लिए सहमत हो, यह घोषित कर सकता है कि वह न्यायालय के क्षेत्राधिकार को अनिवार्य रूप में स्वीकार करता है। उसके क्षेत्राधिकार का विस्तार उन समस्त विवादों पर है जिनका संबंध संधिनिर्वचन, अंतरर्राष्ट्रीय विधि प्रश्न, अंतरर्राष्ट्रीय आभार का उल्लंघन तथा उसकी क्षतिपूर्ति के प्रकार एवं सीमा से है। अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय को परामर्श देने का क्षेत्राधिकार भी प्राप्त है। वह किसी ऐसे पक्ष की प्रार्थना पर, जो इसका अधिकारी है, किसी भी विधिक प्रश्न पर अपनी सम्मति दे सकता है।
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के संविधान में कुल 5 अध्याय व 79 अनुच्छेद हैं। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में फ्रेंच तथा अंग्रेजी भाषा में कराया किया जाता है। विभिन्न पक्षों का प्रतिनिधित्व अभिकर्ता द्वारा होता है। वकीलों की भी सहायता ली जा सकती है। न्यायालय में मामलों की सुनवाई सार्वजनिक रूप से तब तक होती है जब तक न्यायालय का आदेश अन्यथा न हो। सभी प्रश्नों का निर्णय न्यायाधीशों के बहुमत से होता है। सभापति को निर्णायक मत देने का अधिकार है। न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है, उसकी अपील नहीं हो सकती किंतु कुछ मामलों में पुनर्विचार हो सकता है। निर्णय बहुमत निर्णय के अनुसार लिए जाते है। बहुमत से सहमती न्यायाधीश मिलकर एक विचार लिख सकते है, या अपने विचार अलग से लिख सकते है। बहुमत से विरुद्ध न्यायाधीश भी अपने खुद के विचार लिख सकते है।
जब किसी दो राष्ट्रों के बीच का संघर्ष अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के सामने आता है, वे राष्ट्र चाहे तो किसी समदेशी तदर्थ न्यायाधीश को नामजद कर सकती हैं। इस प्रक्रिया का कारण था कि वह देश जो न्यायालय में प्रतिनिधित्व नहीं है भी अपने संधर्षों के निर्णय अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को लेने दे। अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय संविधि में सम्मिलित समस्त राष्ट्र अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर सकते हैं। इसका क्षेत्राधिकार संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र अथवा विभिन्न; संधियों तथा अभिसमयों में परिगणित समस्त मामलों पर है। अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय संविधि में सम्मिलत कोई राष्ट्र किसी भी समय बिना किसी विशेष प्रसंविदा के किसी ऐसे अन्य राष्ट्र के संबंध में, जो इसके लिए सहमत हो, यह घोषित कर सकता है कि वह न्यायालय के क्षेत्राधिकार को अनिवार्य रूप में स्वीकार करता है। उसके क्षेत्राधिकार का विस्तार उन समस्त विवादों पर है जिनका संबंध संधिनिर्वचन, अंतरर्राष्ट्रीय विधि प्रश्न, अंतरर्राष्ट्रीय आभार का उल्लंघन तथा उसकी क्षतिपूर्ति के प्रकार एवं सीमा से है। अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय को परामर्श देने का क्षेत्राधिकार भी प्राप्त है। वह किसी ऐसे पक्ष की प्रार्थना पर, जो इसका अधिकारी है, किसी भी विधिक प्रश्न पर अपनी सम्मति दे सकता है।
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