मंदसौर मध्य प्रदेश में अपनी मांगों के लिए प्रदर्शन कर रहे 5 किसानों की पुलिस की गोली लगने से मौत हो गई। अपनी मांगों को लेकर किसान 1 जून से प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों के 2 मुख्य मांगे हैं फसल की सही क़ीमत मिले और क़र्ज़ माफ़ी। ये दोनों ही बाते बीजेपी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में प्रमुखता से शामिल की थीं । महाराष्ट्र में प्रदर्शन कर रहे किसानों की भी यही मांगें हैं। मंदसौर में किसानो पर हुई गोली चलने की घटना निंदनीय है। कुछ समय पहले नई दिल्ली में तमिनलाड़ू के किसान क़र्ज़माफ़ी और मुआवज़े की मांग के लिए प्रदर्शन थे। अपना घर, गांव छोड़कर ये किसान दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे थे। इन किसानों में नौजवान से लेकर 70 वर्ष से अधिक उम्र के बुर्ज़ुग तक थे। इन किसानों प्रदर्शन राजनीतिक पार्टियों की तरह जुलूस, रैली निकालकर या चक्काजाम करने जैसा नहीं था, उन्होंने अपनी मांग के लिए सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए अलग-अलग तरीक़ अपनाये। पहले अर्धनग्न होकर प्रदर्शन किया, जिन किसानों ने क़र्ज के बोझ से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी उन किसानों के नरमुण्ड (खोपड़ी) अपने गले में डालकर प्रदर्शन किया। उन्होंने हर दिन अलग-अलग तरीक़े से प्रदर्शन किया। कभी उनमें से कोई किसान को लाश बनाकर उसकी शवयात्रा निकाली, कभी एक किसान को प्रधानमंत्री का मुखौटा पहनाकर कोड़े मारते हुए एक नाटक प्रदर्शित किया, कभी कटोरा लेकर भिखारी बन गये, कभी आधी मूंछ मुंडवा ली, चूहा पकड़कर उसे मुंह में लेकर प्रदर्शन किया, सांप का मांस खाया यहां तक कि अपना पैशाब (मूत्र) पीकर भी प्रदर्शन किया। आखिर क्या कारण है पूरे देश को अन्न देने वाले किसान सड़कों पर उतर आये हैं।
‘‘भारत एक कृषि प्रधान देश है’’ इस वाक्य को अगर सही माना जाये तो कृषि का कार्य करने वाले किसानों की आर्थिक स्थिति देश में अन्य लोगों के मुक़ाबले काफ़ी बेहतर होनी चाहिए थी। किसान जिसे देश का अन्नदाता कहा जाता है आज पूरे देश में सबसे ज़्यादा परेशानी के दौर से गुज़र रहा है। क़र्ज़ के बोझ से दबे किसानों की आत्महत्या की ख़बरे अकसर सुनने को मिलती रहती हैं। जो किसान सारे देश को अन्न उपलब्ध करवाता है आज वही किसान क़र्ज़ के बोझ में दबकर ख़ुद अन्न के लिए मोहताज हो गया है।
देश में किसानो के साथ अन्याय ही होता आया है कभी कभी तो सहायता के नाम उनके साथ मज़ाक किया जाता है। कुछ समय पहले हरियाणा में बाड़ पीड़ित किसानों को मुआवज़े के नाम पर 1 रूपये से लेकर 2 रूपये तक के चेक वितरित किये। मध्यप्रदेश में कुछ समय पहले सूखा/ओलावृष्टि/अतिवृष्टि से पीड़ित किसानों के साथी भी ऐसा ही हुआऔर महाराष्ट्र के विदर्भ में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा बहुत ज़्यादा है। मुआवज़े के नाम पर 1 रूपये से लेकर 2 रूपये तक की राशि देना क्या उनकी मजबूरी-लाचारी का मज़ाक़ उड़ाने जैसा नहीं है ?
कुछ समय पहले ‘‘दैनिक भास्कर’’ समाचार पत्र ने सूखे की मार झोल रहे किसानों के लिए एक ‘‘अन्न्दाता के लिए अन्नदान’’ नाम का अभियान चलाया। इस अभियान के अंतर्गत आम जनता से अन्नदान करने को कहा गया और उनसे प्राप्त अन्न सूखे की मार झेल रहे किसान परिवारों को उपलब्ध कराया गया। दैनिक भास्कर द्वारा चलाये गये इस अभियान से किसानों को कुछ सहायता तो मिली लेकिन साथ ही एक गंभीर चिंता का विषय भी है कि जो किसान देश का अन्नदाता था आज वो इस स्थिति में है कि उसके लिए लोगों को अन्नदान करना पड़ रहा है। एक कृषि प्रधान देश के लिए इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है ?
देश में किसानो के साथ अन्याय ही होता आया है कभी कभी तो सहायता के नाम उनके साथ मज़ाक किया जाता है। कुछ समय पहले हरियाणा में बाड़ पीड़ित किसानों को मुआवज़े के नाम पर 1 रूपये से लेकर 2 रूपये तक के चेक वितरित किये। मध्यप्रदेश में कुछ समय पहले सूखा/ओलावृष्टि/अतिवृष्टि से पीड़ित किसानों के साथी भी ऐसा ही हुआऔर महाराष्ट्र के विदर्भ में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा बहुत ज़्यादा है। मुआवज़े के नाम पर 1 रूपये से लेकर 2 रूपये तक की राशि देना क्या उनकी मजबूरी-लाचारी का मज़ाक़ उड़ाने जैसा नहीं है ?
कुछ समय पहले ‘‘दैनिक भास्कर’’ समाचार पत्र ने सूखे की मार झोल रहे किसानों के लिए एक ‘‘अन्न्दाता के लिए अन्नदान’’ नाम का अभियान चलाया। इस अभियान के अंतर्गत आम जनता से अन्नदान करने को कहा गया और उनसे प्राप्त अन्न सूखे की मार झेल रहे किसान परिवारों को उपलब्ध कराया गया। दैनिक भास्कर द्वारा चलाये गये इस अभियान से किसानों को कुछ सहायता तो मिली लेकिन साथ ही एक गंभीर चिंता का विषय भी है कि जो किसान देश का अन्नदाता था आज वो इस स्थिति में है कि उसके लिए लोगों को अन्नदान करना पड़ रहा है। एक कृषि प्रधान देश के लिए इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है ?
आज देश में किसानो की स्थिति बहुत ख़राब है। देश को अन्न देने वाला अन्नदाता पर खुद अन्न का संकट है। पहले ही प्रकृति की मार झेल रहे किसानों के साथ सरकार (केंद्र व राज्य) का लापरवाही का रवैया बहुत चिंतनीय है। क़र्ज़ के बोझ में दबे किसानो की आत्महत्या के आंकड़ों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। हर मुद्दे पर राजनीति करने वाले राजनैतिक दलों को इस मुद्दे पर राजनीती छोड़कर गंभीर होना होगा, सरकार को भी किसानों के लिए नई नीतियां बनानी होंगी ताकि देश का अन्नदाता सम्मान से जी सकें।
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