देश में पिछले कुछ समय से एक अजीब सा माहौल बनता जा रहा है। हर महीने कुछ ऐसी ख़बरें सुनने-पड़ने को मिल रही हैं जिसमे देश में कहीं भी भीड़ द्वारा एक बेगुनाह की इंसान पीट पीटकर हत्या कर दी जाती है। और ये एक दो घटनायें नहीं हैं बल्कि लगातार एक सिलसिला सा चला आ रहा है। कहीं वो उत्तर प्रदेश का अख़लाक़ है, कहीं महाराष्ट्र में मोहसिन शैख़, कहीं राजस्थान में पहलू खान, हाल ही में ट्रैन में जुनेद खान की हत्या कर दी गई। कभी गौतस्करी के नाम पर तो कभी बच्चा चोरी के नाम पर मासूम और बेगुनाह लोगों बेदर्दी से मारा जा रहा है। राजस्थान में ज़फर खान की पीट पीटकर हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि उन्होंने कुछ लोगो को महिलाओं की तस्वीर लेने से रोका था। इससे पहले चमड़े का काम करने वालो दलितों के साथ बेदर्दी से मारपीट की गई थी। कुछ दिन पहले कश्मीर में पुलिस अधिकारी अय्यूब पंडित भी हत्यारी भीड़ का शिकार बने। ये सिर्फ कुछ ही हत्याएं हैं जिनका ज़िक्र किया गया है इनके अलावा भी बहुत सी हत्याएं इसी तरह भीड़ द्वारा की जा चुकी हैं। भीड़ द्वारा ये हत्याएं और आतंक लगातार बढ़ता ही जा रहा है न सरकार और न ही पुलिस का इस पर कोई नियंत्रण है। कुछ घटनाओं में सरकार सिर्फ निंदा कर देती है कुछ दिनों के बाद फिर से ऐसी ही कोई नई खबर आ जाती है। 28 जून को झारखण्ड में बुज़ुर्ग उस्मान अंसारी भी गोरक्षा के लिए इंसान की हत्या के लिए तैयार हत्यारी भीड़ का शिकार बने।
सवाल उठता है की ये भीड़ आखिर अचानक खून की प्यासी क्यों बनती रही है ? भीड़ को कानून का भी कोई डर नहीं है, कई बार तो हत्यारों द्वारा खुद ही वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर किया जाता है। अगर इस सवाल का विश्लेषण करे तो समझ में आएगा की ये भीड़ अचानक नहीं बनने लगी है, भीड़ को ऐसा करने के लिए उकसाया जा रहा है। सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सप्प आदि) आदि के माध्यम से लोगों को भड़काकर और उकसाकर उनका ब्रेनवाश किया जा रहा है। कहीं न कहीं इस हत्यारी भीड़ को राजनैतिक समर्थन भी प्राप्त है। बहुत से लोग इन हत्याओं का विरोध भी कर रहे हैं और बहुत से लोग इस खामोश हैं और कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो इन हत्याओं को धर्मरक्षा/संस्कृति रक्षा के नाम पर सही ठहराने की कोशिश भी करते हैं। लोगों को कभी झूठे ऐतिहासिक तथ्य, धर्म और पुरानी घटनाओं के बारे में बताकर मानसिक रूप से ऐसा करने के लिए तैयार किया जा रहा है।
इन हत्याओं के विरोध में धर्मनिरपेक्ष लोग लगातार आवाज़ उठा हैं। 28 जून को देश में दिल्ली और कई अन्य शहरों में Not in My Name के बैनर के साथ विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में बड़ी संख्या में अमनपसंद लोग शामिल हुए और हत्यारी भीड़ के खिलाफ अपना शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शित किया। not in my name से मतलब यह बताना है की ये हिंसा ''मेरे नाम पर नहीं'' सोशल मीडिया पर #NotInMyName टॉप ट्रेंड में शामिल रहा। लोगों ने सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक Not in My Name अभियान में हिस्सा लिया। सरकार सिर्फ निंदा करके अपनी ज़िम्मेदारी पूरी समझ लेती है। आखिर कब तक धर्मरक्षा/संस्कृति रक्षा के नाम हत्याएं होती रहेंगी ?
सवाल उठता है की ये भीड़ आखिर अचानक खून की प्यासी क्यों बनती रही है ? भीड़ को कानून का भी कोई डर नहीं है, कई बार तो हत्यारों द्वारा खुद ही वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर किया जाता है। अगर इस सवाल का विश्लेषण करे तो समझ में आएगा की ये भीड़ अचानक नहीं बनने लगी है, भीड़ को ऐसा करने के लिए उकसाया जा रहा है। सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सप्प आदि) आदि के माध्यम से लोगों को भड़काकर और उकसाकर उनका ब्रेनवाश किया जा रहा है। कहीं न कहीं इस हत्यारी भीड़ को राजनैतिक समर्थन भी प्राप्त है। बहुत से लोग इन हत्याओं का विरोध भी कर रहे हैं और बहुत से लोग इस खामोश हैं और कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो इन हत्याओं को धर्मरक्षा/संस्कृति रक्षा के नाम पर सही ठहराने की कोशिश भी करते हैं। लोगों को कभी झूठे ऐतिहासिक तथ्य, धर्म और पुरानी घटनाओं के बारे में बताकर मानसिक रूप से ऐसा करने के लिए तैयार किया जा रहा है।
इन हत्याओं के विरोध में धर्मनिरपेक्ष लोग लगातार आवाज़ उठा हैं। 28 जून को देश में दिल्ली और कई अन्य शहरों में Not in My Name के बैनर के साथ विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में बड़ी संख्या में अमनपसंद लोग शामिल हुए और हत्यारी भीड़ के खिलाफ अपना शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शित किया। not in my name से मतलब यह बताना है की ये हिंसा ''मेरे नाम पर नहीं'' सोशल मीडिया पर #NotInMyName टॉप ट्रेंड में शामिल रहा। लोगों ने सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक Not in My Name अभियान में हिस्सा लिया। सरकार सिर्फ निंदा करके अपनी ज़िम्मेदारी पूरी समझ लेती है। आखिर कब तक धर्मरक्षा/संस्कृति रक्षा के नाम हत्याएं होती रहेंगी ?
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