कॉमिक्स कलाकारों / लेखकों / प्रकाशकों के इंटरव्यू की विशेष श्रंखला में आज एक खास इंटरव्यू में हम आपको रूबरू करवा रहे हैं देश के मशहूर और सीनियर कॉमिक्स आर्टिस्ट जनाब हुसैन ज़ामिन साहब से। हुसैन ज़ामिन साहब ने विभिन्न कॉमिक्स, मैगज़ीन, पत्रिकाओं के लिए आर्टवर्क बनाये हैं। भारतीय कॉमिक्स में उनका योगदान अतुलनीय है। हुसैन ज़ामिन साहब ने ''मधु मुस्कान'' जैसी कई मशहूर मैगज़ीन के लिए आर्टवर्क बनाये है। कला के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान के लिए पूर्व राष्ट्रपति मरहूम ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहब द्वारा सम्मानित किया गया है। हुसैन ज़ामिन साहब नए आर्टिस्ट के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत हैं। आइये , हुसैन ज़ामिन साहब से उनकी ज़िंदगी के रोमांचक और कामयाब सफ़र के बारे में जानते हैं।
सर, विशेष इंटरव्यू में आपका स्वागत है। मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात है जो आप जैसी बड़ी शख़्सियत के साथ इंटरव्यू करने का मौक़ा मुझे मिला।
सवाल 1 : अपने जीवन के अब तक के सफ़र के बारे में बताएं।
जवाब : जब मैं आठ-दस साल का था, तब से ही मुझे ड्राइंग करने का शौक शुरू हो गया था. उन दिनों मैं फ़िल्मी पत्रिकाओं में प्रकाशित फ़िल्मी सितारों के चेहरे बनाया करता था. उस ज़माने के कलाकार जैसे दिलीप कुमार, शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार, अशोक कुमार, सुनील दत्त. अभिनेत्रियों में मीना कुमारी, माला सिन्हा, आशा पारेख वगैरह. उनके स्केच बनाकर अपने परिवार और दोस्तों को दिखाता. अगर वे स्केच नहीं पहचान पाते तो निराश हो जाता. लेकिन फिर दुबारा बनाने की कोशिश करता. धीरे-धीरे मेरे बनाए स्केच सबने पहचानना शुरू कर दिया तो मुझे बहुत प्रेरणा मिलती गयी और मेरा मनोबल बढ़ता गया.
लगातार अभ्यास करते रहने से मेरे बनाए स्केच हू-बा-हू बनने लगे. अब मैंने आयल पेंट से बड़े-बड़े पोस्टर बनाने शुरू कर दिए. उन दिनों में एक फैशन सा चल निकला थ ... हर कोल्ड ड्रिंक और कॉफ़ी हाउस में फ़िल्मी सितारों के पोस्टर लगा होता था.
सवाल 2 : ड्राइंग के अलावा आपके और क्या-क्या शौक हैं ?
जवाब : ड्राइंग के अलावा मुझे फिल्में देखने का बहुत शौक था ....लेकिन अब नहीं है. अब तो फेसबुक पर online आकर मस्ती मारने का शौक लग गया है मुझे. गाने सुनने का शौक तो अब भी है लेकिन आज-कल के कान-फाडू गाने नहीं ....अपने ही ज़माने के पुराने मधुर गाने.
सवाल 3 : आपके परिवार और दोस्तों की आपके काम पर क्या राय रहती है और उनसे कितना सहयोग मिलता है ?
जवाब :अब जब मेरा शौक ही मेरी आजीविका का एक मात्र स्रोत बन गया है तो हर एक दोस्त और परिवार क्या राय देंगे ? सब ही खुश हैं. और वैसे भी परिवार का मुखिया तो मैं ही हूँ.
सवाल 4 : वर्तमान में आप किन- किन प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं ?
जवाब : वर्तमान में मैं विज्ञापन फिल्मों के लिए स्टोरीबोर्ड बना रहा हूँ. कभी-कभार कुछ पोर्ट्रेट बनाने का काम भी मिल जाता है.
सवाल 1 : अपने जीवन के अब तक के सफ़र के बारे में बताएं।
जवाब : जब मैं आठ-दस साल का था, तब से ही मुझे ड्राइंग करने का शौक शुरू हो गया था. उन दिनों मैं फ़िल्मी पत्रिकाओं में प्रकाशित फ़िल्मी सितारों के चेहरे बनाया करता था. उस ज़माने के कलाकार जैसे दिलीप कुमार, शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार, अशोक कुमार, सुनील दत्त. अभिनेत्रियों में मीना कुमारी, माला सिन्हा, आशा पारेख वगैरह. उनके स्केच बनाकर अपने परिवार और दोस्तों को दिखाता. अगर वे स्केच नहीं पहचान पाते तो निराश हो जाता. लेकिन फिर दुबारा बनाने की कोशिश करता. धीरे-धीरे मेरे बनाए स्केच सबने पहचानना शुरू कर दिया तो मुझे बहुत प्रेरणा मिलती गयी और मेरा मनोबल बढ़ता गया.
लगातार अभ्यास करते रहने से मेरे बनाए स्केच हू-बा-हू बनने लगे. अब मैंने आयल पेंट से बड़े-बड़े पोस्टर बनाने शुरू कर दिए. उन दिनों में एक फैशन सा चल निकला थ ... हर कोल्ड ड्रिंक और कॉफ़ी हाउस में फ़िल्मी सितारों के पोस्टर लगा होता था.
सवाल 2 : ड्राइंग के अलावा आपके और क्या-क्या शौक हैं ?
जवाब : ड्राइंग के अलावा मुझे फिल्में देखने का बहुत शौक था ....लेकिन अब नहीं है. अब तो फेसबुक पर online आकर मस्ती मारने का शौक लग गया है मुझे. गाने सुनने का शौक तो अब भी है लेकिन आज-कल के कान-फाडू गाने नहीं ....अपने ही ज़माने के पुराने मधुर गाने.
सवाल 3 : आपके परिवार और दोस्तों की आपके काम पर क्या राय रहती है और उनसे कितना सहयोग मिलता है ?
जवाब :अब जब मेरा शौक ही मेरी आजीविका का एक मात्र स्रोत बन गया है तो हर एक दोस्त और परिवार क्या राय देंगे ? सब ही खुश हैं. और वैसे भी परिवार का मुखिया तो मैं ही हूँ.
सवाल 4 : वर्तमान में आप किन- किन प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं ?
जवाब : वर्तमान में मैं विज्ञापन फिल्मों के लिए स्टोरीबोर्ड बना रहा हूँ. कभी-कभार कुछ पोर्ट्रेट बनाने का काम भी मिल जाता है.
सवाल 5 : आपके पसंदीदा कॉमिक्स, लेखक, आर्टिस्ट और कॉमिक करैक्टर कौन हैं ?
जवाब : मेरी पसंदीदा कॉमिक इंद्रजाल (जिनमें वेताल, मैनड्रैक, रिप कर्बी और टॉम सोयर होते हों ), टिनटिन, एस्ट्रिक्स, आर्ची और अपनी मधु मुस्कान . पसंदीदा आर्टिस्ट हैं मिस्टर साय बेरी जो वेताल का चित्रांकन करते थे.... और कॉमिक करैक्टर उन्ही का बनाया वेताल .
सवाल 6 : आप अपने जीवन में सबसे ज़्यादा किससे प्रभावित है और किसे अपना रोल मॉडल मानते हैं ?
जवाब : इस सवाल का जवाब मैं आपके पांचवे सवाल के जवाब में ही दे चूका हूँ --- मिस्टर साय बेरी.
सवाल 7 : आपका पसंदीदा स्पोर्ट्स , फ़िल्म, बॉलीवुड / हॉलीवुड कलाकार कौन है ?
जवाब : मुझे किसी भी स्पोर्ट्स में कोई रूचि नहीं है . पुरानी मौलीवुड फिल्में ही पसंद हैं मुझे.
अब आप पूछेंगे यह मौलीवुड क्या है ? पूछिए ....पूछिए ! अरे भई, बॉलीवुड नाम तब पड़ा था जब उस शहर का नाम बॉम्बे था. अब तो वह मुंबई हो गया है तो मौलीवुड ही कहलायेगा न ? हाएं ?
सवाल 8 : भारत में कॉमिक्स के भविष्य के बारे में आपके क्या विचार हैं ?
जवाब : इसका जवाब मैं एक अदना सा चित्रकार कैसे दे सकता हूँ ? मेरी तो यही तमन्ना है कि कॉमिक्स की लोकप्रियता क़यामत तक यूंही बनी रहे और मैं यूंही इंटरव्यू देता रहूँ.
जवाब : मुझे किसी भी स्पोर्ट्स में कोई रूचि नहीं है . पुरानी मौलीवुड फिल्में ही पसंद हैं मुझे.
अब आप पूछेंगे यह मौलीवुड क्या है ? पूछिए ....पूछिए ! अरे भई, बॉलीवुड नाम तब पड़ा था जब उस शहर का नाम बॉम्बे था. अब तो वह मुंबई हो गया है तो मौलीवुड ही कहलायेगा न ? हाएं ?
सवाल 8 : भारत में कॉमिक्स के भविष्य के बारे में आपके क्या विचार हैं ?
जवाब : इसका जवाब मैं एक अदना सा चित्रकार कैसे दे सकता हूँ ? मेरी तो यही तमन्ना है कि कॉमिक्स की लोकप्रियता क़यामत तक यूंही बनी रहे और मैं यूंही इंटरव्यू देता रहूँ.
सवाल 9 : अपने कई कॉमिक्स प्रकाशकों के साथ काम किया. उन सबके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा ?
जवाब : अच्छा भी रहा और बुरा भी रहा. लेकिन सबसे ज़्यादा मज़ा मुझे मधु मुस्कान में काम करके मिला. दुनिया में शायद ही उनके जैसा कोई और प्रकाशक होगा. उन्हें खुद पता नहीं होता था कि मधु मुस्कान में क्या प्रकाशित होने वाला है. जब पत्रिका प्रकाशित हो जाती थी तो वे बड़े चाव से एक आम पाठक की तरह पूरी पत्रिका एक घंटे में चाट जाते थे.... और खूब कहकहे लगाते थे.
जवाब : अच्छा भी रहा और बुरा भी रहा. लेकिन सबसे ज़्यादा मज़ा मुझे मधु मुस्कान में काम करके मिला. दुनिया में शायद ही उनके जैसा कोई और प्रकाशक होगा. उन्हें खुद पता नहीं होता था कि मधु मुस्कान में क्या प्रकाशित होने वाला है. जब पत्रिका प्रकाशित हो जाती थी तो वे बड़े चाव से एक आम पाठक की तरह पूरी पत्रिका एक घंटे में चाट जाते थे.... और खूब कहकहे लगाते थे.
सवाल 10 : आपके हिसाब से एक अच्छी कॉमिक्स के क्या मापदण्ड हैं ?
जवाब : मेरे हिसाब से कॉमिक्स तो फ़ीचर फ़िल्म का एक विकल्प ही है. जिस तरह फ़िल्मों में एक शिक्षाप्रद या और मनोरंजक कहानी होती है. नायक, नायिका और विदूषक होते हैं... इसी तरह ये सब कॉमिक में भी होने चाहिए. कॉमिक्स हम जब, जहां और जितनी बार पढ़ना चाहें... बैठे-बैठे, खड़े-खड़े, चलते-चलते, खाते-पीते, बिस्तर पर लेटे हुए भी पढ़ सकते हैं, इस तरह फ़िल्म नहीं देख सकते हैं.
जवाब : मेरे हिसाब से कॉमिक्स तो फ़ीचर फ़िल्म का एक विकल्प ही है. जिस तरह फ़िल्मों में एक शिक्षाप्रद या और मनोरंजक कहानी होती है. नायक, नायिका और विदूषक होते हैं... इसी तरह ये सब कॉमिक में भी होने चाहिए. कॉमिक्स हम जब, जहां और जितनी बार पढ़ना चाहें... बैठे-बैठे, खड़े-खड़े, चलते-चलते, खाते-पीते, बिस्तर पर लेटे हुए भी पढ़ सकते हैं, इस तरह फ़िल्म नहीं देख सकते हैं.
सवाल 11 : टेक्नोलॉजी के दौर में कॉमिक्स मेकिंग में बहुत बदलाव आये हैं, पहले जहाँ लगभग सभी काम हाथ से किये जाते था वहीँ अब कंप्यूटर / लैपटॉप / ग्राफ़िक्स टेबलेट का इस्तेमाल होता है, टेक्नोलॉजी के बढ़ते चलन से कॉमिक्स मेकिंग को कितना फ़ायदा पहुंचा है ?
जवाब : टेक्नोलॉजी से कॉमिक्स बनाने में बेशक बहुत फ़ायदा हुआ है. काम करना आसान हो गया है. काम में सुन्दरता आ गयी है और काम करने की गति भी बढ़ गयी है. पर एक चित्रकार के जो हाथों की फ़ीलिंग्स होती थीं वह ख़त्म हो गयी है.
सवाल 12 : नब्बे का दशक कॉमिक्स का स्वर्णिम काल माना जाता है. क्या वैसा समय दुबारा आ सकता है ? उसके लिए कॉमिक्स आर्टिस्ट और फैंस को क्या करना होगा ?
जवाब : बेशक नब्बे का दशक कॉमिक्स का स्वर्णिम काल माना जाता है... लेकिन यह स्वर्णिम काल सिर्फ दिल्ली और आस-पास के शहरों के लिए ही कहा जा सकता है. मुंबई में तो यह स्वर्णिम काल साठ के दशक से ही शुरू हो गया था, जब वहां से इंद्रजाल कॉमिक्स और अमर चित्र कथा प्रकाशित होती थीं. तब से वक्त बड़ी तेज़ी से बदल रहा है.... नई-नई तकनीक का इजाद हो रहा है. आर्टिस्ट और पाठकों को चाहिए कि वे भी अपने आपको वक्त के साथ बदलें.
सवाल 13 : पहले की तुलना में नई जनरेशन कॉमिक्स और किताबों में उतनी अधिक रूचि नहीं रखती उन्हें कॉमिक्स जैसी अनमोल धरोहर के क़रीब लाने के लिए क्या करना चाहिए ?
जवाब : पहले मनोरंजन के साधन बहुत सीमित थे. दूरदर्शन दिन में सिर्फ चार घंटे ही चलता था शाम छ: बजे से रात दस बजे तक. बच्चों को मैदान में खेलने के बाद घर में पत्रिका और कॉमिक्स ही साधन होता था मनोरंजन का. अब टीवी पर सैकड़ों चैनल हैं जो चौबीस घंटे मनोरंजन करते रहते हैं... वीडियो गेम्स हैं... सोशल साइट्स हैं. मैं नहीं समझता हूँ कि कॉमिक्स के लिए वह पहली वाली रूचि दुबारा कभी लौटेगी. यही कड़वा सच है. हाँ ! यह बात ज़रूर है कि कॉमिक्स की लोकप्रियता को देखते हुए शैक्षणिक प्रकाशनों ने भी अपनी पुस्तकों में कॉमिक्स और कार्टून बनवाना शुरू कर अपनी पुस्तकों को मनोरंजक बना दिया है.
सवाल 14 : पायरेसी ने कॉमिक्स इंडस्ट्री को काफ़ी नुक़सान पहुँचाया है. आपके विचार में इसे रोकने के लिए किस तरह के क़दम उठाने चाहिए ?
जवाब : मेरा तकनीकी ज्ञान शुन्य है. मुझे यही नहीं पता कि पायरेसी होती क्या है तो इसको रोकने के बारे में मैं क्या बता सकता हूँ ? यही कह सकता हूँ कि किसी भी चीज़ के जब कुछ लाभ हैं तो उसके कुछ नुक्सान भी हैं यही बात तकनीक पर भी लागू होती है.
सवाल 15 : कॉमिक्स से जुड़ी आपके जीवन की कोई मज़ेदार घटना जिसे सोचकर आपके चेहरे पर मुस्कान आ जाती हो
जवाब : कॉमिक्स से मुझे प्रशंसा तो बहुत मिली लेकिन आय इतनी नहीं हुई कि चालीस साल बाद भी मै अपना एक घर बना सकूं. अब तक किराए के घरों में ही बसर हो रही है. घूम रहा हूँ मोहल्ले-मोहल्ले खानाबदोश की तरह. सरकारी या नीजी नौकरी भी नहीं है... जो आसानी से किराए पर घर मिल जाया करे. हमेश नए मकान-मालिक को अपने पेशे के बारे में समझाना पड़ता है.
ऐसे ही एक मकान-मालिक को परिचय देने के मेरे उनके साथ के संवाद पढ़िए .....
मकान-मालिक : क्या काम करते हैं आप ?
मैं : ज जज जी ...मैं कार्टूनिस्ट हूँ ...कॉमिक्स बनाता हूँ !
मकान-मालिक : कार्टूनिस्ट ? वह तो शक्ल से ही लगते हैं आप ...कार्टून (ठहाका ) 😄
सवाल 16 : भारतीय कॉमिक्स और विदेशी कॉमिक्स में तुलना करने पर आप क्या अन्तर पाते हैं ?
जवाब : मेरा बचपन विदेशी कॉमिक्स पढ़कर ही बीता इसलिए मेरे मन-मस्तिष्क पर विदेशी कॉमिक्स की ही छाप अधिक गहरी पड़ी है.
सवाल 17 : नए आर्टिस्ट जो कॉमिक्स इंडस्ट्री में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं उन्हें मार्गदर्शन के लिए आप क्या राय देना चाहेंगे ?
जवाब : फेसबुक पर मैं अक्सर देखता हूँ कि नए कॉमिक्स आर्टिस्ट हमेशा एक से ही पहलवान नुमा बॉडी बिल्डर के स्केच बनाते हैं. muscles के बड़े-बड़े गोले-शोले बनाते हैं. उन्हें चाहिए कि वे पहले एनाटोमी का अभ्यास करें. पहलवान नुमा हीरो के साथ-साथ बच्चों और बूढों के स्केच भी बनाएं. लाइव स्केचिंग करें. अच्छी कॉमिक्स की नक़ल भी करेंगे तो उन्हें काफ़ी कुछ सीखने को मिलेगा. पिछले दिनों मैंने देखा ललित कुमार शर्मा जी ने संजय अष्टपुत्रे जी की बनायी नागराज की कॉमिक अपनी कॉपी में हू-बा-हू नक़ल की थी. तभी आज वे DC में कार्यरत हैं .
सवाल 18 : अंत में कॉमिक्स फैंस को क्या संदेश देना चाहेंगे ?
जवाब : पहली बात तो कॉमिक्स पढ़ने वाले पाठकों को फैंस कहना ही मुझे अच्छा नहीं लगता है. मैं बूढ़ा हो गया हूँ इसलिए दोस्त कहना भी अटपटा-सा लगता है. ये पाठक ही तो हैं जिनकी वजह से आज आप मेरा इंटरव्यू ले रहे हैं. है न? अगर वे मेरी बनायी कॉमिक्स न खरीदते तो भला प्रकाशक क्यूँ मुझसे कॉमिक्स बनवाते? पाठकों ने लगातार मेरी बनायी कॉमिक्स खरीदीं, तभी तो मैं भी आज तक लगातार काम करता आ रहा हूँ. इसलिए मेरे पाठकों के लिए मेरा यही संदेश है कि मेरे प्रति अपना प्रेम यूंही बनाए रखना.... ताकि मैं उत्साहित और प्रेरित होकर और भी अच्छा काम करने का प्रयास करता रहूँ.
सर अपने क़ीमती वक़्त से हमारे इंटरव्यू के लिए वक़्त देने के लिए आपका बहुत
शुक्रिया। इस इंटरव्यू के माध्यम से हमें आपको और आपके काम के बारे में
जानने का मौक़ा मिला। आप हम सभी के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत हैं। आपके द्वारा दी गई कॉमिक्स से जुडी महत्वपूर्ण
जानकारियां कॉमिक्स आर्टिस्ट, और कॉमिक्स फैंस के लिए बहुत
उपयोगी साबित होंगी. हम उम्मीद करते हैं भविष्य में भी आप लगातार कॉमिक्स
इंडस्ट्री में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते रहेंगे और हमें आपके द्वारा
निर्मित बेहतरीन कॉमिक्स पड़ने को मिलेंगी। हमारी हार्दिक शुभकामनायें.
शहाब ख़ान
©Nazariya Now
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