मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है। देश और समाज के निर्माण में मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। मीडिया (इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट) का काम सिर्फ जनता सही और निष्पक्ष तक ख़बरें/सूचनायें पहुंचना ही नहीं हैं बल्कि इसके साथ समाज को एक सही दिशा देना भी है। जनता तक ख़बरें/सूचनायें मीडिया के माध्यम से ही पहुँचती हैं और वो मीडिया से प्राप्त सूचना को सच मान लेते हैं। जनता मीडिया पर विश्वास करती है लेकिन मीडिया द्वारा विभिन्न माध्यमों से जो ख़बरें/सूचनायें दी जा रही वो कितनी विश्वसनीय और निष्पक्ष हैं पिछले कुछ समय से इस पर सवाल उठता आ रहा है। हाल ही में कोबरा पोस्ट द्वारा मीडिया की विश्वसनीय की जाँच के लिए ''ऑपरेशन 136'' नाम से एक स्टिंग ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन 136 के जो नतीजे सामने आएं हैं वो चौंकाने वाले हैं। ऑपरेशन 136 द्वारा मीडिया के घिनोना और लालची चेहरा बेनक़ाब हुआ है। इस स्टिंग में ऑपरेशन देश के प्रतिष्ठित मीडिया हाउस (इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया) के चेहरे बेनक़ाब हुए हैं।
ऑपरेशन 136 में देश के प्रतिष्ठित मीडिया हाउस के वरिष्ठ अधिकारी पैसों के लिए एक पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने और विपक्ष और विपक्षी दलों के बड़े नेताओं का दुष्प्रचार करके चरित्र हनन करने और उनके खिलाफ झूठी अफवाहें फैलाकर उनकी छवि को धूमिल करके सत्तारूढ़ दल के पक्ष में माहौल बनाने की सौदेबाजी का भी पर्दाफाश हुआ है साथ ही सत्तापक्ष से जुडी नकारात्मक ख़बरों को छुपाने या कम दिखाने के बारे में भी सौदेबाज़ी कर रहे हैं। ये पूरी सौदेबाज़ी मीडिया (इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट) हाउस करोड़ों रुपयों में कर रहे हैं।
ऑपरेशन 136 से सच सामने आया है वो बहुत भयानक है, जिस मीडिया पर देश और जनता तक सही और निष्पक्ष जानकारी देने की ज़िम्मेदारी है वो पैसे के लिए किस हद तक गिर सकते हैं ये बहुत ही शर्मनाक होने के साथ-साथ लोकतंत्र के लिए भी खतरनाक है। कोबरापोस्ट ने ‘ऑपरेशन 136’ के नाम से किए गए स्टिंग ऑपरेशन के माध्यम से मीडिया जगत के उस स्याह पक्ष का पर्दाफाश किया है कि पैसों के लिए मीडिया अपनी आवाज और कलम का भी सौदा कर सकता है।
अब ये बात ग़ौर करने लायक़ है की अभी तक हम जो ख़बरें/सूचनाओं को सच्चाई मान रहे थे क्या वो वाक़ई में सच थी या पैसों के लिए किसी खास एजेंडे को खबर बनाकर दिखाया जा रहा था ? इस स्टिंग ऑपरेशन से मीडिया ने अपनी विश्वसनीयता को खोई है। निश्चित रूप से अब जनता हर खबर को शक की नज़रें से देखेगी। लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का या ये काला चेहरा गंभीर चिंता का विषय है।
शहाब ख़ान
©Nazariya Now
निंदा आयोग की स्थापना (व्यंग्य)
राजनीति और अवसरवाद
आज़ादी के 70 साल बाद भारत
हत्यारे को महिमामंडित करने की मानसिकता देश को गंभीर खतरे की और ले जा रही है
नफरत की अँधियों के बीच मोहब्बत और इंसानियत के रोशन चिराग़
सरकारी पैसे का जनप्रतिनिधियों द्वारा दुरूपयोग
देश में बढ़ता जालसाज़ी का कारोबार
क्या सैनिकों की शहादत मुआवज़ा दिया जा सकता है ?
सैनिकों की शहादत पर होती राजनीति
भीड़ द्वारा हत्यायें महज़ दुर्घटना नहीं साज़िश
गुलज़ार अहमद वानी 17 साल क़ैद में बेगुनाह
मानहानि मुक़दमे - सवाल प्रतिष्ठा या पैसे का ?
सपनों का सौदा (कहानी )
स्पेशल पेशेंट - (कहानी)
दलित की दावत (कहानी)
चुनाव - (कहानी)
हमें ख़ुद को बदलना होगा (कहानी)
रुपया, अर्थव्यवस्था, महंगाई और राजनीति
अख़बार (कहानी)
गरीब के लिए शहर बंद (कहानी)स्पेशल पेशेंट - (कहानी)
दलित की दावत (कहानी)
चुनाव - (कहानी)
हमें ख़ुद को बदलना होगा (कहानी)
रुपया, अर्थव्यवस्था, महंगाई और राजनीति
अख़बार (कहानी)
देशभक्त नेताजी (कहानी )
अंधभक्ति की आग में जलता देश
देशभक्ति के मायने
No comments:
Post a Comment