ज़िन्दगी का कोई छोर नही होता....आदि नही होता..अन्त भी नही होता। ज़िन्दगी तो बस एक सफर है।आसान हो ये ज़रूरी नही....मुश्किल हो ये तय नहीं लेकिन हर किसी को चलना तो पड़ता ही है। शब्दों में ज़िन्दगी को बांधा नही....बस पिरोया जा सकता है।
बहुत कोशिश की की बांध लूं ज़िन्दगी को पर जितनी कोशिश की बंधती ही चली गयी और इतना कि आज 20 साल हो गए पर मुक्त होने का खयाल ही नही आया। भूल गयी कि इच्छा होती क्या है, या जीना किसे कहते हैं। सिर्फ सांस लेना ही जीना है क्या? इतने सालों तक बस सांस ही लेती रही। कोई इतनी आसानी से नाउम्मीदी को कैसे गले लगा सकता है? कोई इतनी खामोशी से , शांति से अशांति की आदत कैसे डाल सकता है? पर सच है ये......सोचिये तो , कितना मरी होगी वो मरने के लिए,मरने से पहले.....न चीख न आंसू , बस खाली आंखे, बेवजह सांसे।।
पर आज अचानक, किसी ने उसको ज़िंदा मान के ज़िंदा कर दिया.... । "आप एर्विन कॉलेज में पढ़ती थी न?" अक्षिता कुछ बोल ही नही पायी। मुड़ के देखा, पहचानने की कोशिश की, पर चेहरा पहचान मैं नही आ रहा था।
तभी वो फिर बोला, "आप मुझे नही पहचानेगी, हम कभी मिले ही नही । मैं तो आपका जूनियर था । पर आप लिखती अच्छा थी और काफी चर्चा में रहती थी, मै आपका बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूं। आज आपको अचानक देखा तो याद आ गया सब इसलिए मिलने चला आया। आप आज भी लिखती हैं क्या? "
वो न जाने क्या क्या बोल रहा था, पर अशिता का मन अपने ही बारे में सुन के सुन्न हो गया था। मुझमे कुछ अच्छा भी था क्या?? कोई हुनर , कोई बात जो किसी को मुझे याद रखने पे मजबूर कर सके। सब भूल चुकी थी वो। वक़्त ने उसे सिर्फ मिसेस मालिक बना के छोड़ दिया था। खूबसूरत मकान को घर बनाने की कोशिश में उम्र बीत गयी, पर वो मकान ही रहा।
"आप अभी भी लिखती है क्या?" उसी अनजान आवाज़ से उसकी तंद्रा टूटी। " नही , अब नही। ज़माना हो गया वो सब छोड़े।"
पर क्यों? सशक्त और कुशल लेखन आपको ईश्वरीय देन थी। आपकी सोच ,शब्दों में एक अलग गहराई थी,दिलों को जकझोरने की ताक़त थी। "उसने कहा
उसकी इस बात का कोई जवाब नही था मेरे पास। वापस घर आ गयी। वो घर जो कभी मेरा न हुआ और जिसके कारण मेरा अपना घर भी मेरा न रहा।
तभी शितिज का कॉल आया," कहाँ थी? खाना क्या बनाया?
मिस्ड कॉल देख के भी कॉल नही किया जाता तुमसे? हद् होती है लापरवाही की।।" इस तरह की बातों की अब उसको आदत पड़ चुकी थी। अपना वजूद ही नही रह गया। और यह कम था , पीने के बाद तो ....
शाम होने लगी और बाहर के अंधेरे के साथ उसके अंदर का अंधेरा भी बढ़ने लगा।वही डर.....आज वो क्या करेगा, क्या कहेगा, आदि आदि आदि।
रात को शितिज लौटा तो वोही हाल....न खुद का होश न उसकी चिंता। दरवाज़ा बंद करके वो अंदर जाने लगी,...
"मैं किसी और से शादी करना चाहता हु। मुझे तुमसे डिवोर्स चाहिए, मैं तुमसे प्यार नही करता।"
क्या बोल दिया शितिज ने, उसके पैरों के नीचे की ज़मीन खींच ली।क्या करे। पैर कांप रहे थे, लगा गिर पड़ेगी । पैर लड़खड़ाने लगे, उन्ही कदमों से अपने कमरे तक पहुची।
आज आंखे सूखी थी, शायद रो रो के थक गई थी।।
पता ही नही चला कब सुबह हुई। कामवाली के आने पे एहसास हुआ। पर अब अक्षिता को एक कदम उठाने पे ज़िन्दगी की गर्मी का आभास हुआ। उठी , तैयार हुई मन से, समान पैक किया फिर..... "शितिज मैं जा रही हूँ। डाइवोर्स पेपर्स भेज दूंगी, तुम मेरे लायक नही"।
आज फिर ... 20 साल बाद ज़िंदा होने का एहसास हुआ, खुद को खोजने की चाह हुई, किसी के लिए नही ... अपने लिए।।
चल पड़ी वो अपने आकाश की ओर, अपनी उडान के लिए।
लेखिका : शैली जौहरी
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
......तो क्या उन्होंने फिर से लिखना शुरू कर दिया है?
ReplyDeleteबहुत अच्छी है।💐
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