शनिवार को मैं अपने बाबा के साथ बाज़ार गयी। वहां पर मैंने उन्हें बहुत सारा सामान खरीदने को कहा। बाबा ने कहा की उनके पास जो रुपये हैं वो अब नहीं काम करते और बेकार हो गए हैं।
बाबा के पास नोट नहीं थे और न ही वो मशीन वाला कार्ड था। इसलिए हम सामान नहीं खरीद पाए और घर आ गए।
मैंने घर आ कर बाबा के लिए ढेर सारे नोट बनाये और उन्हें दे दिए। बाबा ने मुझे प्यार किया और मेरे बनाये नोट पॉकेट में रख लिए। उन्होंने बताया की नए नोट जल्दी मिल जायेंगे और तब हम लोग सब सामान ले लेंगे।
सन्डे को मैं बाबा के साथ बाज़ार गयी और सब सामान खरीद लिया क्यूंकि बाबा कार्ड ले कर गए थे। नोट से अच्छा बाबा का कार्ड।
लेखिका : आयरा
यह कहानी एक नन्ही बच्ची ''आयरा'' द्वारा 5 साल की उम्र में लिखी गई थी। 5 साल की कम उम्र में कहानी लिखना प्रशंसनीय है। इसके लिए आयरा की सराहना की जानी चाहिए।
ये कहानी हमारी प्रतियोगिता के नियमानुसार न होने के बाद भी हम आयरा के प्रयास की सराहना करते हुए और उसके लेखन को सम्मान देने और उसके प्रोत्साहन के लिए कहानी को प्रतियोगिता शामिल कर रहे हैं। उम्मीद करते हैं आयरा भविष्य में साहित्य जगत में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बनाने में कामयाब होगी। नन्ही लेखिका आयरा को भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनायें।
Nazariya Now
The next day, the police put you under arrest.
ReplyDeleteWish you all the best Ayera....Great job and God bless you....
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