पूरी
दुनिया में गांधीजी की एक ख़ास पहचान है। पूरी दुनिया में गांधीजी को एक
महान व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। गाँधी और भारत एक दूसरे के पर्याय
हैं। भारत को दुनिया गांधीजी के अहिंसावादी देश के रूप में जानती है।
गांधीजी ने आज़ाद भारत के लिए एक सपना देखा था। एक ऐसा भारत जहाँ हर
व्यक्ति को उसके सारे अधिकार मिले, किसी के साथ भी धर्म, जाति या क्षेत्र
के आधार पर कोई भेदभाव न हो, हर व्यक्ति को अपने धर्म पर चलने की की पूरी
आज़ादी हो। देश को आज़ाद हुए 7 दशक हो चुके हैं क्या गांधीजी का ये सपना पूरा
हुआ ?
लम्बे वक़्त तक ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी के बाद 15
अगस्त 1947 को देश को आज़ादी मिली। देश की आज़ादी के लिए, अपने सपनों का
भारत बनाने के लिए गाँधीजी ने देशवासियों के साथ मिलकर एक लम्बा संघर्ष किया, हज़ारों स्वंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की क़ुर्बानी
दी। 15 अगस्त 1947 के बाद से आज तक पिछले 70 सालों में देश में क्या-क्या
बदलाव आया ? 70 साल पहले और आज के वक़्त में देशवासियों के जीवन स्तर में
क्या फ़र्क़ आया है ? क्या आज देश के हर नागरिक के पास बुनियादी सुविधायें
आसानी से उपलब्ध हैं ? क्या देश के नागरिकों को उनके सभी संवैधानिक अधिकार
प्राप्त हैं ? हालाँकि तब के भारत और अब के भारत में ज़मीन आसमान का फ़र्क़
है। पहले के मुक़ाबले बहुत कुछ बदला है। लेकिन कुछ ऐसा भी है जिसमे कोई खास
बदलाव नहीं आया है, वो है शासन करने वाले का रवैया आसान शब्दों में सरकार
की कार्यप्रणाली कह सकते हैं। वर्तमान में सरकारों (केंद्र / राज्य) का
रवैया काफी कुछ ब्रिटिश शासन के समय के अधिकारीयों जैसा ही है।
ब्रिटिश
शासनकाल के समय सरकार की चापलूसी करने वालों को सम्मान और पदवियाँ
दी जाती थी, ब्रिटिश सरकार के गलत कामों का विरोध करने वालों को बाग़ी और
देशद्रोही कहा जाता था, स्वतंत्रता सेनानियों को सरकार का विरोध करने पर
फांसी दी जाती थी, वर्तमान में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है सरकार की आलोचना
करने पर देशद्रोही कहा जाता है। जिस तरह से ब्रिटिश शासन के समय सरकार की
आलोचना करने वाले अख़बारों पर पाबन्दी लगाई जाती थी वर्तमान में भी उसके कई
उदाहरण हैं कुछ समय पहले एक न्यूज़ चैनल 24 घंटे के लिए बैन करने का
आदेश दिया गया लेकिन बाद में जनविरोध के कारण उस आदेश को वापस लिया गया।
सोशल एक्टिविस्ट, आर.टी.आई. एक्टिविस्ट और पत्रकारों का सम्बन्ध
नक्सलियों से बताकर गिरफ़्तार किया। ईमानदार पत्रकारों को नौकरी से निकाला
जा रहा है। पुण्य प्रसून वाजपेयी और
अभिसार शर्मा को अपनी ईमानदार पत्रकारिता की क़ीमत चुकानी पड़ी। आज़ादी के
70 साल
बाद भी देश में भ्रष्टाचार, गरीबी, बेरोज़गारी, अपराध, महिला असुरक्षा,
आतंकवाद, नक्सलवाद, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद , राजनीती का
अपराधीकरण जैसे समस्याओं में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है।
आज
भी देश ऐसे लोग मौजूद हैं जिनके पास न तो पेट भर खाना है न सर के ऊपर छत, न
रोज़गार है न बुनियादी ज़रूरते पूरी करने लायक आमदनी। बीमार हो जाये तो सही
तरीके से इलाज मिलना भी मुश्किल है। पिछले कुछ समय में भूख से हुई मौतें
दिल दहला देने वालीं हैं। लोगों के खानपान और रहन सहन के तरीकों पर
पाबंदियां लगाई जा रही हैं। धर्म जाति के नाम पर भेदभाव किया जाने लगा
है। आज भी एक दलित को ,शादी में बारात निकलने पर पाबंदियां लगाई जाती
हैं। आज भी देश में कई क्षेत्रों में दलित को मंदिर में प्रवेश करने पर
पाबंदी है। गोहत्या जैसे फ़र्ज़ी मुद्दे बनाकर लोगों की हत्याएँ की जा रही
हैं और
हत्यारों का महिमामंडन किया जा रहा है। एक हत्यारे के समर्थन में लोग
प्रदर्शन करते हैं, हाईकोर्ट की छत पर भगवा झंडा लगा देते हैं। वरिष्ठ
नेता द्वारा हत्यारों को फूलमाला पहनकर सम्मान किया जाता है। रेपिस्ट के
समर्थन में लोग तिरंगा लेकर जुलुस निकलते हैं।
ब्रिटिश शासनकाल में भी यही होता तो वो शासन करते थे जनता के
दुःख दर्द से कोई लेना देना नहीं था। आज़ादी के 70 साल बाद देश की जनता के
पास संवैधानिक अधिकार तो हैं लेकिन उन्हें उनके अधिकार हासिल नहीं करने दिए
जा
रहे। उस समय जिस तरह से पाबंदियां लगाई जाती थी आज भी लगाई जा रही हैं।
सरकारें (केंद्र / राज्य) अपनी मर्ज़ी से बिना जनता का हित समझे कानून बनाती
हैं। राजनीति की चक्की में सत्ता और विपक्ष के पाटों के बीच जनता को ही
पिसना पड़ता है।
आज देश में किसानों की बढ़ती आत्महत्या
चिंता का विषय है लेकिन उस पर भी सत्तापक्ष और विपक्ष अपनी अपनी राजनैतिक
रोटियां सेंकते हैं। देश में हुई कोई प्राकृतिक दुर्घटना हो, सड़क या रेल
दुर्घटना या कोई आतंकी हमला हर मुद्दे पर पर सत्तापक्ष और विपक्ष अपना
राजनैतिक फायदा देखकर राजनीति करते हैं और तो देश के सैनिकों की शहादत पर
भी राजनीति करने से बाज़ नहीं आते। अपने अधिकारों के लिए प्रदर्शन कर रहे
किसानों की समस्याओं को सुलझाने के बजाये उन पर गोली चलाई जाती है, कभी
लाठी चार्ज किया जाता है । देश में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में
बढ़ोतरी हुई है, वर्तमान में मासूम बच्ची से लेकर बुज़ुर्ग महिला तक
सुरक्षित नहीं है, गांव में घूँघट में रहने वाली महिला से लेकर मेट्रो सिटी
में कॉर्पोरेट ऑफिस में काम करने वाली महिला तक असुरक्षित है।
राजनेताओं
की संपत्ति लगातार बढ़ती जा रही है और जनता पर टैक्स का बोझ बढ़ता जा रहा
है। महंगाई दिन दूनी रात चौगुनी की रफ़्तार से बढ़ती जा रही है। राजनीति का
अपराधीकरण हो गया है। हर पार्टी में ऐसे लोग बड़ी संख्या में मौजूद हैं जिन
पर हत्या, रैप, दंगा करने जैसे गंभीर मुक़दमे दर्ज हैं। जिन लोगों को जेल
होना चाहिए वही लोग मंत्री, सांसद और विधायक बने बैठे हैं। नैतिकता और
सिद्धांत की बातें सिर्फ किताबों में नज़र आती हैं, राजनेता कई बार ऐसे ऐसे
बेहूदा और अनर्गल आपत्तिजनक बयान देते हैं कि शर्म को भी शर्म आ जाये।
उधोगपति
देश का पैसा खाकर देश से भाग रहे हैं। नोटबंदी ने देश की अर्थव्यस्था की
कमर तोड़ दी हैं। महंगाई दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। डॉलर के मुक़ाबले
रुपये की क़ीमत लगातार गिरती जा रही है। न खाऊंगा न खाने दूंगा की बात करने
वाले प्रधानमंत्री खुद राफ़ेल सौदे में एक उधोगपति को फायदा पहुँचाने के
लिए शक के दायरे में है। हर मुद्दे पर सत्ता और विपक्ष एक दूसरे पर कीचड़
उछालने में व्यस्त हैं।
आज
गांधीजी होते तो ये सब देखकर क्या बीतती। जिसने सारी ज़िन्दगी अहिंसा का
सन्देश दिया आज उसी देश में छोटी छोटी बातों को मुद्दा बनाकर हिंसा की जा
रही है। इंसान की जान की कोई क़ीमत नहीं रह गई है। गांधीजी सुशासन की बात
करते थे आज देश में जंगलराज की स्थिति बनती जा रही है।
क्या हमें गांधीजी के सपनो का भारत मिल पायेगा ? ऐसा भारत जहाँ देश के हर नागरिक के अधिकारों
की रक्षा हो, देश के हर नागरिक के पास बुनियादी सुविधायें आसानी से उपलब्ध
हों, जहाँ कोई भूखा न रहे, हर एक पास अपना घर हो, सही इलाज के आभाव में
किसी की मौत न हो, कोई बेरोज़गार न हो, महिलाओं को सम्मान मिले, देश पूरी तरह भ्रष्टाचार से मुक्त
हो, किसी के साथ धर्म / जाति या क्षेत्र के नाम पर भेदभाव न हो, जनता के
पास जनप्रतिनिधियों से सवाल करने का अधिकार हो साथ ही ठीक से काम न करने पर
जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार हो।
शहाब ख़ान 'सिफ़र'
यथार्थ को अभिव्यक्त करती है आपकी रचना
ReplyDeleteशुक्रिया आभार
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