रोज़ की तरह ही वह बूढा
व्यक्ति किताबों की दुकान पर आया, आज के सारे समाचार पत्र खरीदे और वहीँ
बाहर बैठ कर उन्हें एक-एक कर पढने लगा, हर समाचार पत्र को पांच-छः मिनट
देखता फिर निराशा से रख देता।
आज दुकानदार के बेटे से रहा नहीं गया, उसने जिज्ञासावश उनसे पूछ लिया, "आप ये रोज़ क्या देखते हैं?"
"दो साल हो गए... अख़बार में मेरी फोटो ढूंढ रहा हूँ...." बूढ़े व्यक्ति ने निराशा भरे स्वर में उत्तर दिया।
यह
सुनकर दुकानदार के बेटे को हंसी आ गयी, उसने किसी तरह अपनी हंसी को रोका
और व्यंग्यात्मक स्वर में पूछा, "आपकी फोटो अख़बार में कहाँ छपेगी?"
"गुमशुदा की तलाश में..." कहते हुए उस बूढ़े ने अगला समाचार-पत्र उठा लिया।
समाप्त
लेखक : डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
Great... Heart touching
ReplyDeleteआदरणीय महोदय, आपकी ये लघुकथा गुमशुदा की तलाश शीर्षक से कहीं और भी किसी अन्य लेखक के नाम से प्रकाशित है आप चाहें तो वेबसाइट पर आॅनलाइन पता कर सकते हैं एवं हमारा मार्गदर्शन भी करने की कृपा कीजिए कि क्या ऐसा परिवर्तन भी किया जा सकता है। ध्यानाकर्षण हेतु सादर प्रेषित।
ReplyDeleteआदरणीय महोदय इस लघुकथा के बारे में सूचित करने के लिए आपका धन्यवाद। ये लघुकथा हमें डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी जी द्वारा भेजी गई थी। ये लघुकथा किसी अन्य शीर्षक से कहीं और प्रकाशित भी है इसकी हमें जानकारी नहीं दी गई थी। आप इस सम्बन्ध में डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी जी से संपर्क करके अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं उनकी वेबसाइट का लिंक ये है http://chandreshkumar.wikifoundry.com
Deleteधन्यवाद।
बहुत-बहुत धन्यवाद। आपकी बहुमूल्य टिप्पणी प्राप्त हुई। आज के व्यस्त समय में जब विस्तृत प्रतिक्रियाओं का अभाव हो गया है तब आपके द्वारा व्यक्त किये गए विचार हमारा उत्साहवर्द्धन करने के लिए काफी हैं। हम आपके प्रति आभार व्यक्त करते हैं। विश्वास है भविष्य में भी आपका मार्गदर्शन प्राप्त होता रहेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद आभार
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