पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के
परिणाम आ चुके हैं। इन चुनावों को लोकसभा चुनाव से पहले सेमीफइनल माना जा
रहा था। चुनाव में बीजेपी को ज़बरदस्त हार का सामना करना पड़ा। छत्तीसगढ़
में जहाँ बीजेपी को करारी शिकस्त मिली वहीं मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी
बीजेपी बहुमत के आंकड़ों से दूर रही, तेलंगाना और मिजोरम में तो सिर्फ एक
सीट ही मिल सकी। चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी
आदित्यनाथ सही सभी स्टार प्रचारकों ने जमकर सभायें की, हिन्दू-मुस्लिम, राम
मंदिर और गोरक्षा जैसे मुद्दे को भी भुनाने की कोशिश की गई, उसके बाद भी
किसी राज्य में जीत नहीं मिल सकी। वहीं कांग्रेस ने इन चुनावों में किसान
की समस्याओं और बीजेपी की राज्य और केंद्र सरकार नाकामियों और गलत नीतिओं
को मुद्दा बनाया।
राम मंदिर और गोरक्षा जैसे मुद्दों को आगे रखकर बीजेपी ने धार्मिक भावनाओं
को वोट में तब्दील करने के लिए पूरा ज़ोर लगाया लेकिन जनता ने विकास को हुए
मुख्य मुद्दा मानते हुए जनादेश दिया। इस चुनाव से ये तो साफ़ हो गया की
जनता के लिए विकास का मुद्दा ही महत्वपूर्ण है। चुनाव परिणामों से ये
सन्देश भी मिला की अब मोदी मैजिक अपना असर दिखाने में नाकाम रहा, अमित शाह
की नीतियां भी नाकाम साबित रहीं, योगी आदित्यनाथ के भड़काऊ भाषण भी अपना
असर दिखने में नाकाम रहे। राहुल गाँधी इन चुनावों में नरेंद्र मोदी, अमित
शाह और राज्यों के मुख्यमंत्रियों के मुक़ाबले में मज़बूत साबित हुए।
जनादेश
से जनता ने साफ़ सदेश दे दिया है कि उसे ग़ैरज़रूरी मुद्दों में उलझाकर
बुनियादी मुद्दों से नहीं भटकाया जा सकता, जनता अब झूठे वादों और फ़र्ज़ी
तथ्यों के जाल में नहीं फंसने वाली नहीं है। चुनावों में मिली जीत जहाँ
कांग्रेस के लिए एक इम्तिहान है जनता ने उसे विकल्प के रूप में चुना है तो
उसकी ज़िम्मेदारी है एक अच्छी सरकार देना और और जो वादे चुनाव में किये हैं
उन्हें अमलीजामा पहनया जाये। चुनाव से पहले देश को कांग्रेस मुक्त करने की
बात करने वाली अतिआत्मविश्वास से लबरेज़ बीजेपी के लिए ये परिणाम एक खतरे
की घंटी है।
अगले
साल लोकसभा चुनाव होंने हैं केंद्र सरकार पहले ही बढ़ती महंगाई, राफेल
मुद्दा, किसानों की समस्याएं, मोबलिंचिंग और अपनी अनेक नाकामियों से जूझ
रही है, लोग अभी तक नोटबंदी को भूले नहीं हैं। नरेंद्र मोदी लहर भी लगातार
फीकी पड़ने लगी हैं। एन.डी.ए. में भी फूट पड़ चुकी है एक के बाद एक सहयोगी
दल बीजेपी का साथ छोड़ रहे हैं। विपक्ष का संयुक्त महागठबंधन भी बीजेपी के
लिए लोकसभा चुनावों में बड़ी चुनौती साबित होने वाला है।
✍ शहाब ख़ान 'सिफ़र'
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