आदरणीय कक्का,
चरणों में प्रणाम स्वीकारिए!
हाल-चाल
कुशल-मंगल है। हस्तिनापुर की गर्मी बड़ा पसीना बहा रही है। वैसे गांधारी
काकी कुंती बहन के साथ मज़े में हैं। परंतु चार दिन पहले गांधारी काकी को
एकठो सपना आया रहा और ऊ रतिया में उठकर चिल्लाय पड़ीं!
"गो कोरोना जो!"
"गो कोरोना जो!"
"का बताएं! हम तो चौंधिया के उठ बैठे!"
हमने
काकी को बहुत समझाया कि हमें कउनो ख़तरा नाही है ऊ कोरोना से। हम तो मंत्री
जी के बँगले पर हैं। परंतु ऊ नाही मानीं और कहने लगीं कि उन्हें पटना जाना
है कउनो क़ीमत पर। हम भी का करते भागे ससुर हस्तिनापुर रेलवे स्टेशन की तरफ़
मुफ़त वाले टिकट के लिए जहाँ पहुँचकर पता चला कि टिकट कउनो मुफ़त-वुफत में
नाही मिल रहा बल्कि वहाँ तो धृतराष्ट्र बाबा का फ़रमान रहा कि ससुर एक-एक
प्रजा से चवन्नी तक वसूला जाए मगध पहुँचने पर मगधनरेश से। औरे यदि मगधनरेश
कउनो प्रजा के टिकट का पइसा न चुका पाए तो उस प्रजा का कच्छा तक नीलाम कर
दिया जाए हस्तिनापुर के करनॉट प्लेस पर शाम के पहरे! अंत में हमरे बहुत
समझाने पर गांधारी काकी मान गईं और अपना डेरा-तम्बू अभी तक हस्तिनापुर के
कन्हैयापुर में गाड़े पड़ी हैं।
आगे ख़बर बड़ा दुखद है! कल हमरा धमाकेदार चप्पल टूट गया रहा। ससुर
मोची की सघन तलाश हस्तिनापुर के जंगलों में ढिबरी-बत्ती लेकर की गई परंतु
सब बेकार गया। अंत में ले-देके एकठो मरियल-सा मोची दिखाई दिया जो
टुकड़े-टुकड़े गैंग वाले विश्वविद्यालय के गेट पर बैठा रहा। ससुरा शक्ल से ही
कम्युनिष्ट लग रहा था!
और
रह-रहकर समता मूलक समाज के नारे भी लगा रहा था। बात किया तो पता चला,
जन्मेजय साहेब उसकी लड़ाई सत्तर बरस से कोरट मा लड़ रहे हैं। मसला कुछ ई रहा
कि,
पिता
धृतराष्ट्र पुत्रमोह में आकर पूरा हस्तिनापुर उजाड़ने पर तुले हुए हैं!
बीच-बीच में वह मरियल मोची पुरानी बिसलेरी की बोतल से मुन्सिपलिटी के
सौजन्य से लगाए गए टुटपुँजिया नल का पानी पी-पीकर मामा शकुनी को भी दस-पाँच
गाली रशीद करता चला जा रहा था।
आइए! अब आपको सीधे ले चलते हैं हस्तिनापुर के झटपट दरबार में। बने रहिए मेरे साथ।
नमस्कार!
मैं राजा कवीश कुमार,
"सत्ता जब बहरी हो जाए तो भूखी-नंगी जनता का चिलचिलाती धूप में सड़कों
पर इस महामारी के कठिन दौर में निकलना लाज़मी हो जाता है। जहाँ एक तरफ़
हस्तिनापुर राज्य में फल-सब्ज़ियों की दुकानें ठेलों,शॉपिंग मॉलों से उठकर
मंदिरों और मस्ज़िदों में पलायन कर गईं! हमारे विशेष संवाददाता ने बताया है
कि राष्ट्रहित में फल और सब्ज़ियों की ख़रीद-फरोख़्त में अब ए.टी.एम. की जगह
आधारकार्ड धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है और वहीं हस्तिनापुर के
देशभक्त 'कोरोना प्यारी महामारी' के आतंक से सफ़ेदपोश मुँह पर नक़ाब पहनकर राज्य के मैख़ानों में घूम रहे हैं!
उधर बाबा धृतराष्ट्र जहाँ एक तरफ़ इस विकट 'महामारी कोरोना प्यारी' की चोली खींच रहे हैं और अपनी भूखी-नंगी जनता को राजकोष ख़ाली हो जाने का हवाला देते नज़र आ रहे हैं वहीं दूसरी तरफ़ हस्तिनापुर का प्राचीन, भव्य-भवन
मुगल-ए-आज़म द्वारा बनाए जाने की बात कह उसे ज़मीं-दोज़ कर नये मल्टीप्लेक्स
राजभवन का निर्माण कराने का मसौदा बापू के तीनों बंदरों के बीच रखते नज़र आ
रहे हैं।
चिंता की बात यह है कि, बापू के ये प्यारे तीनों बंदर आजकल थोबड़े की
किताब पर मस्त हैं या तो ट्विटर हैंडल पर पस्त हैं। इतनी व्यस्तता के चलते
ये बंदर बाबा धृतराष्ट्र के मसौदे की बारीकियाँ समझने में अक्षम से प्रतीत
होते हैं जबकि परम-पूज्य बाबा धृतराष्ट्र ने अपने हर-फ़न-मौला ट्विटर हैंडल के माध्यम से बिना समय गँवाए साफ़तौर पर प्रजा को यह बताया है कि नया मल्टीप्लेक्स राजभवन को
बनाने में बीस हज़ार करोड़ चिल्लर डॉलर राज्य के प्रजा की गाढ़ी कमाई का ख़र्च
बैठेगा और दूसरी तरफ़ राजतंत्र के कुनबे के अर्धनग्न कर्मचारियों के
विभिन्न मदों वाले भत्ते काटे जाएंगे।
प्रजा
और राज्य का भार सँभालने वाले परम प्रतापी, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के
सफ़ेदपोश वंशज सदृश,शास्त्री जी की खादी टोपी पहनने वाले और राज्य
के भूखी-नंगी प्रजा को टोपी पहनाने वाले अतिविशिष्ट नागरिकों के वेतन-भत्ते
में इज़ाफ़ा किया जाएगा, और दुर्योधन के पाँच-सौ-दो पताका छाप जाँघिए का
पैसा ग़रीब प्रजा के हित में डाला जाएगा!
बाबा धृतराष्ट्र ने गोद लिए न्यूज़ चैनल को बताया-
"हम ग़रीब प्रजा का दर्द भली-भाँति समझते हैं इसलिए हमने इस 'महामारी कोरोना प्यारी' से निपटने का उपाय ढूँढ निकाला है!"
"अब
हम रेड-जोन में आने वाले छोटे राज्यों में एक-एक तालाब खुदवाएंगे और उसमें
गाँधी के डांडी-यात्रा वाला नमक स्वादानुसार मिलवाएंगे।"
"राज्य
के प्रत्येक नागरिक को मिर्चा खाना मना होगा जिसके लिए हम 'रैपिड ऐक्शन
बल' की दस हज़ार टुकड़ियाँ भेजेंगे ताकि पानी का समुचित बँटवारा किया जा
सके!"
"अनाज से बनी दारू विदेशों में दवा के तौर पर भिजवाई जाएगी जिससे कि हमारे मित्र-राष्ट्रों की संख्या में दिनों-दिन इज़ाफ़ा हो सके।"
"अरे भई,चप्पल सिल गई कि पूरी महाभारत हमें यहीं सुना दोगे!"
"अरे
साहब, हम ग़रीब आपको क्या सुनाएँगे! हम तो ई भूखमरी में अपने ही पेट की
आवाज़ तक नहीं सुन पाते। ससुर दिनभर गैस बना करती है! लो बाबू जी, हो
गई तैयार तुम्हरी 'लोकतंत्र की चप्पल'! घिसो इसे 'पाँच बरस' हस्तिनापुर के जनपथ पर!"
लेखक : ध्रुव सिंह 'एकलव्य'
डिस्क्लेमर : आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस
आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा
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